पूरम उत्सव 2022 का आयोजन केरल के शहर त्रिशूर में किया गया।
एक सप्ताह तक चलने वाले इस उत्सव का आयोजन 2 वर्ष बाद 10 मई से किया गया।
इस उत्सव का आयोजन केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय और केरल के पर्यटन विभाग द्वारा किया जाता है।
यह उत्सव केरल के हिन्दू समुदाय द्वारा प्रथम मलयालम महीने मेडम में मनाया जाता है।
पूरम का अर्थ 'उत्सव' होता है।
यह उत्सव त्रिशूर शहर के वडक्कुनाथन मंदिर में मनाया जाता है।
इस उत्सव का इतिहास लगभग 200 वर्ष पुराना है। इसे भारत के सबसे पुराने मंदिर उत्सवों में से एक माना जाता है।
यह उत्सव कोच्चि के महाराजा सकथान थम्पुरम द्वारा शुरू किया गया था।
इस उत्सव का आयोजन केरल के 10 प्रमुख मंदिरों में किया जाता है।
इस उत्सव में आस्था के साथ ही आतिशबाजी भी देखने को मिलती है।
केरल के निवासियों के लिए यह उत्सव बहुत पवित्र है।
त्रिशूर पूरम उत्सव की प्रमुख विशेषता इसका धर्मनिरपेक्ष होना है। हिन्दुओं के साथ-साथ मुस्लिम तथा ईसाई लोग भी इसमें भाग लेते हैं।
कैसे मनाते हैं त्रिशूर पूरम उत्सव
इस उत्सव की शुरुआत ध्वजारोहण समारोह से होती है जिसे कोडीएट्टम कहा जाता है।
इस उत्सव में हाथियों की मुख्य भूमिका होती है। उन्हें सजावटी सुनहरे आभूषणों से सजाया जाता है। इन आभूषणों को नेट्टीपट्टम कहते हैं।
इस उत्सव में 2 आतिशबाजियाँ होती हैं— पहली ध्वजारोहण के 4 दिन बाद और दूसरी मुख्य पूजा के दिन।
मुख्य उत्सव की यात्रा प्रातः काल सबसे बड़े मंदिर से आरंभ होती है। इस यात्रा का स्वागत अन्य 9 मंदिरों के बाहर उपस्थित श्रद्धालु करते हैं।
इस उत्सव में संगीत का भी विशिष्ट स्थान है। इसके अंतर्गत विभिन्न पारंपरिक वाद्ययंत्रों का प्रयोग किया जाता है जैसे— मद्दलम, थिमिला, चेन्डा, कोम्बू।
त्रिशूर पूरम उत्सव का सातवां और अंतिम दिन पाकल पूरम कहलाता है।
पाकल पूरम के दिन त्रिरुवामबाड़ी कृष्ण मंदिर और पारामेक्कावु देवी मंदिर की मूर्तियों को मुख्य द्वार से उनके संबंधित मंदिरों में ले जाया जाता है जो पूरम उत्सव की समाप्ति को दर्शाता है।
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