हड़प्पा सभ्यता के पुरास्थल के बारे में पहली बार तब पता चला जब लगभग 150 वर्ष पहले पंजाब में रेलवे लाइन बिछाई जा रही थी। काम में जुटे इंजीनियरों को अचानक एक पुरास्थल मिला जो अब पाकिस्तान में है। उन्होंने अच्छी ईटों के लालच में हड़प्पा के खंडहरों में से हज़ारों ईटें उखाड़ कर उनसे रेलवे लाइन बिछा दी। इस क्रम में कई इमारतें नष्ट हो गईं।
कई साल बाद पुरातत्त्वविदों ने इस स्थल को ढूँढ़ा और तब पता चला कि यह पुरास्थल सबसे पुराने शहरों में से एक है। इसके बाद और भी कई पुरास्थल मिले जिन्हें हड़प्पा सभ्यता की इमारतें कहा गया। इन शहरों का निर्माण लगभग 4700 वर्ष पूर्व हुआ था।
कई शहर दो या ज्यादा हिस्सों में विभाजित थे। पश्चिमी भाग छोटा था तथा ऊँचाई पर बना होता था और पूर्वी भाग बड़ा था तथा निचले हिस्से में बना होता था। ऊँचे हिस्से को नगर-दुर्ग कहा जाता है और निचले हिस्से को निचला-नगर कहा जाता है।
कुछ नगरों के नगर-दुर्ग में खास इमारतें बनी होती थीं जैसे मोहनजोदड़ो में बना खास तालाब जिसे महान स्नानागार कहा जाता है। ईंट और प्लास्टर से बने इस तालाब में पानी का रिसाव रोकने के लिए प्लास्टर के ऊपर चारकोल की परत चढ़ाई गयी थी। इस स्नानागार में उतरने के लिए दो तरफ से सीढ़ियाँ बनी थीं तथा चारों ओर कमरे बने थे।
इन नगरों में घरों को एक या दो मंजिला बनाया जाता था और आंगन के चारों ओर कमरे होते थे। अधिकांश घरों में अलग स्नानघर तथा कुआँ होना भी इनकी विशेषता थी।
कई नगरों में नाले ढके होते थे जो बाद में बड़े नालों में मिला दिए जाते थे।
हड़प्पा के नगरों से मिलने वाली अधिकतर वस्तुएँ पत्थर, शंख, ताँबे, काँसे, सोने और चाँदी जैसी धातुओं से बनी थीं।
औज़ार, हथियार, गहने और बर्तन बनाने में ताँबे और काँसे का प्रयोग होता था। गहने और बर्तन बनाने में सोने और चाँदी का भी प्रयोग किया जाता था।
हड़प्पा सभ्यता के नगरों से मिलने वाली सबसे आकर्षक वस्तुओं में मनके, फलक और बाट प्रमुख हैं। बाट बनाने में चर्ट पत्थर का प्रयोग किया जाता था।
हड़प्पा सभ्यता से पत्थर की आयताकार मुहरें मिली हैं जिन पर सामान्यतः जानवरों के चित्र मिले हैं।
हड़प्पा सभ्यता के लोग लाल मिट्टी के बर्तन बनाते थे जिन पर काले रंग से डिजाइन बना होता था।
कपास की खेती सम्भवतः 7000 वर्ष पहले मेहरगढ़ में होती थी।
सूत कताई का संकेत भी मिलता है क्योंकि पकी हुई मिट्टी और फ्रेयन्स से बनी तकलियाँ मिली हैं। मनके, चूड़ियाँ, बाले और छोटे बर्तन फ्रेयन्स से बनाये जाते थे।
हड़प्पा सभ्यता में ताँबे का आयात सम्भवतः आज के राजस्थान और पश्चिम एशियाई देश ओमान से किया जाता था।
टिन का आयात आधुनिक ईरान और अफ़गानिस्तान से किया जाता था।
सोने का आयात आधुनिक कर्नाटक और बहुमूल्य पत्थर का आयात गुजरात, ईरान और अफ़गानिस्तान से किया जाता था।
हड़प्पा सभ्यता के लोग गेहूँ, मटर, दालें, जौ, तिल, सरसों और धान उगाते थे। वहाँ मिले पौधों के कुछ अवशेषों से ऐसा ज्ञात होता है।
धौलावीरा नगर कच्छ इलाके में खादिर बेत के किनारे बसा था जो साफ पानी और उपजाऊ जमीन का स्रोत था।
धौलावीरा नगर 3 भागों में बँटा हुआ था जबकि हड़प्पा सभ्यता के बाकी कई नगर 2 भागों में विभक्त थे।
लोथल नगर साबरमती नदी की एक उपनदी के किनारे बसा था और यहाँ कीमती पत्थर जैसा कच्चा माल आसानी से उपलब्ध था। यह पत्थरों, धातुओं और शंखों से निर्मित वस्तुओं का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।
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