4 जुलाई 1902 में स्वामी विवेकानंद का निधन हुआ था। उनका वास्तविक नाम नरेंद्र नाथ दत्त था।
उनका प्रसिद्ध नारा था "उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत" यानी 'उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए'।
वे साहित्य दर्शन और इतिहास के प्रकांड विद्वान थे।
स्वामी विवेकानंद के विचारों ने लोगों के जीवन को शक्ति और आत्मविश्वास से भर दिया।
जब उन्होंने अमेरिका में आयोजित हुए धर्म संसद में अपने भाषण की शुरुआत हिन्दी में की तो हर दिल को जीत लिया था।
उनके भाषण के बाद 2 मिनट तक "आर्ट इंस्टिट्यूट ऑफ शिकागो" तालियों से गूंज उठा था।
स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व और विचारों ने न सिर्फ भारतीयों को बल्कि विदेशियों को भी प्रेरित किया था। भगिनी निवेदिता ऐसी ही एक विदेशी थीं जो उनकी परम शिष्या थीं।
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