11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस शहीद हुए। आज ही के दिन उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दी गई।
वर्ष 1889 को बंगाल के मिदनापुर जिले में जन्मे खुदीराम बोस देश के महान क्रांतिकारियों में से एक थे।
स्कूल छोड़ने के बाद वे रेवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वंदेमातरम के पंपलेट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
"युगान्तर" नामक क्रांतिकारियों की गुप्त संस्था के माध्यम से खुदीराम क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय हो गए।
1905 में बंगाल का विभाजन होने के बाद खुदीराम बोस देश को आजादी दिलाने के लिए आंदोलन में कूद पड़े।
उनकी देशभक्ति से प्रभावित होकर उन्हें अंग्रेज मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड को मारने की जिम्मेदारी दी गई जिसमें उन्हें प्रफुल्ल चंद्र चाकी का साथ मिला।
दुर्भाग्यवश खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने जिस बग्घी पर बम फेंका उस पर किंग्सफोर्ड नहीं था।
बाद में प्रफुल्लचंद्र चाकी को पुलिस द्वारा रेलवे स्टेशन पर घेर लिया गया जहां उन्होंने मौके पर अपने आप को गोली मारकर अपनी शहादत दे दी।
इसके बाद खुदीराम बोस भी पकड़े गए और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई।
भारतीय स्वाधीनता के लिए मात्र 18 साल की उम्र में खुदीराम बोस हाथ में गीता लेकर फांसी पर चढ़ गए।
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